गहलोत सरकार ने नए संस्कृत स्कूल खोले, कई क्रमोन्नत भी किए लेकिन 'गुरु बिन' ज्ञान कहा?

 राजस्थान की संस्कृत शिक्षा में नए स्कूल (Sanskrit Schools) खोलने के साथ ही क्रमोन्नति भी कर दिए गए लेकिन अब विभाग को ही इन स्कूलों में शिक्षकों की चिंता भी सताने लगी हैं. शिक्षकों की कमी से जूझते संस्कृत शिक्षा विभाग के शैक्षणिक संस्थानों में करीब 40 से 50 फीसदी तक शिक्षकों के पद रिक्त (Teaching Faculty Shortage) पड़े हैं. प्रदेश के कई स्कूल कॉलेज तो इक्का-दुक्का शिक्षकों के भरोसे ही चल रहे हैं. बजट के अभाव में संस्कृत स्कूलों में सुविधाओं का भी अभाव बड़ी चुनौती बना हुआ है. प्रदेश में संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए देश में सबसे पहले संस्कृत शिक्षा निदेशालय बनाया गया था. जिसके अधीन मौजूदा समय में राज्य के 1796 संस्कृत स्कूल और कॉलेज और शैक्षणिक संस्थान चल रहे हैं. इनमें तकरीबन दो लाख विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं. सरकारें किसी भी दल की रही हों लेकिन बरसों से इस विभाग को लेकर सरकारी उदासीनता का रवैया कुछ इस कदर रहा है कि यहां शिक्षकों की कमी और स्कूलों में संसाधनों को लेकर कोई खास ध्यान नहीं दिया गया.

गहलोत सरकार ने खोले 5 नए स्कूल, 69 को क्रमोन्नत किया
मौजूदा सरकार ने इस विभाग पर जरूर ध्यान देते हुए हाल ही में 5 नए और 69 स्कूलों को क्रमोन्नत तो किया, लेकिन इसी के साथ विभाग के सामने शिक्षकों की नियुक्ति की चिंता खड़ी हो गई. इसे लेकर जारी किए गए आदेश में सरप्लस शिक्षकों को लगाने को कहा गया. लेकिन सरप्लस कहां से होंगे जब पर्याप्त शिक्षक ही विभाग में मौजूद नहीं हैं. स्कूलों में चालीस और कॉलेजों में पचास प्रतिशत से ज्यादा शिक्षकों के पद रिक्त चल रहे हैं.

यहां है शिक्षकों की कमी


 

जयपुर और नजदीक के स्कूलों में संस्कृत शिक्षा में फिर भी स्टाफ है. लेकिन दूर दराज इलाकों में स्कूलों में शिक्षकों की संख्या नाकाफी है. यहां तक कई स्कूलों में इक्का-दुक्का गुरुजन ही पूरी स्कूल संभाल रहे हैं. जहां संसाधन तो दूर शिक्षक भी पर्याप्त नहीं हैं. इनमें राजकीय शास्त्री महाविद्यालय चेचक कोटा, पीठ डूंगरपुर और नाथद्वारा, राजकीय आर्चाय कॉलेज बीकानेर, उदयपुर और अजमेर पर भी इक्का दुक्का शिक्षक ही मौजूद हैं. जबकि सैकंडरी स्कूल सांकरिया उदयपुर और कांकरवां चित्तौड, उदानियों की ढाणी बाड़मेर और पाली, सीनियर सैकंडरी थोरिया राजसमंद जिला, गोलिया जैतमाल बाड़मेर, भीनमाल में तो नाम मात्र के शिक्षक मौजूद हैं. ये उन स्कूल कॉलेजों के नाम है जहां एक दो शिक्षकों के भरोसे पूरे स्कूल कॉलेज चल रहे हैं. शिक्षाविद और शिक्षक संघ इस मामले पर सरकार का ध्यान आकर्षित करवाते रहे हैं लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं.